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Monday, October 08, 2012

PHIR DOOBENGE.. / फिर डूबेंगे .....



Prem sagar mein dubki lagakar nikle
socha chalo saans le lete hain.
jab satah pe aye to hathon mein paya
anjuli bhar khara pani,kuchh seepiyan
aur chand kan ret ke .

Kyon na ham doob hi jayen
us athah ,gabheer, neele shoonya mein
jahan har cheez mahakti hai tumhare sparsh matra se
jahan ham dono ki dhadkane gungunati hain ek hi sur mein
jahan suraj ko pakadne se haath nahin jalta hai
aur chaand ko nazdeek se dekh man harshit ho jata hai
jahan ham chandni ki thandak ko odh kar
tumhare saath andhere ko bhi paar kar sakte hain

Ek guzarish hai bas,saath mat chhodna
tairna chahen to tum bhi sang tairna
sahil ko pane ki zid karein to maan lena
bhanwar mein fans jayen to kheench lena
agar doobne lagein to hamare saath doob jana
ankhon mein tumhe band karke
chale jayenge paar us kshitij ke
phir lautenge isi jahan mein
phir doobenge prem sagar mein
___________________________________________________


प्रेम सागर में डुबकी लगाकर निकले
सोचा चलो सांस ले लेते हैं.
जब सतह पे आये तो हाथों में पाया
अंजुली भर खारा पानी,कुछ सीपियाँ
और चंद कण रेत के .

क्यों ना हम डूब ही जाएँ
उस अथाह ,गभीर, नीले शून्य में
जहाँ हर चीज़ महकती है तुम्हारे स्पर्श मात्र से
जहाँ हम दोनों की धड़कनें गुनगुनाती हैं एक ही सुर में
जहाँ सूरज को पकड़ने से हाथ नहीं जलताहै
और चाँद को नज़दीक से देख मन हर्षित हो जाता है
जहाँ हम चाँदनी की ठंडक को ओढ़ कर
तुम्हारे साथ अंधेरे को भी पार कर सकते हैं

एक गुज़ारिश है बस,साथ मत छोड़ना
तैरना चाहें तो तुम भी संग तैरना
साहिल को पाने की ज़िद करें तो मान लेना
भँवर में फंस जाएँ तो खींच लेना
अगर डूबने लगें तो हमारे साथ डूब जाना
आँखों में तुम्हें बंद करके
चले जायेंगे पार उस क्षितिज के
फिर लौटेंगे इसी जहान में
फिर डूबेंगे प्रेम सागर में....................

11 comments:

  1. श्रेश्ट रचन प्रस्तुति के लिये हर्दिक बधै और अनंत शुभ कामनायेँ.
    -जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र्

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  2. Amazing! Cannot put my finger on to what I liked, but I was touched. Keep writing. Happy emancipation!

    ReplyDelete
  3. सम्मानित ''अपर्णा'' जी, बहुत बहुत बधाई

    अंजुली भर खारा पानी,कुछ सीपियाँ
    और चंद कण रेत के .………………प्रेम और आज के दौर में ! सागर आज कल तो तालाब भी प्रेम का नहीं मिलता। एक बार फ़िर आपने जिवंत शब्द से मन को मोह लिया। वाकई में गोता तो इस सागर में लगाना ही चाहिए, सफ़लता नहीं ! तो, असफ़लता भी नहीं मिलता। क्यूंकि वाकई में ''खारा पानी,कुछ सीपियाँ, चंद कण रेत अर्थात तज़ुर्बा ज़रूर मिल जाता है, जिनसे हम सीख कर आगे की ज़िन्दगी मे, वो गलतियाँ न दोहराएँ।

    जहाँ हम चाँदनी की ठंडक को ओढ़ कर
    तुम्हारे साथ अंधेरे को भी पार कर सकते हैं.………………आपके एक एक शब्दों का संबोधन उस प्रेम को लेकर है, जो शाश्वत प्रेम कहलाता है। ये सभी अनुभूति उसी प्रेम में समाहित होता है, मगर आज के परिपेक्ष्य में ये एक निरा स्वपन सा आभासित,……

    एक गुज़ारिश है.…………हमारे साथ डूब जाना……………….वाह वाह सुन्दर बहुत ही सुन्दर चाहत प्रेम में यही चाहत हमें प्रेम की ओर आकर्षित करती है। सुन्दर शब्दों में आपने, अपने अभिलाषित मन की बात रखी है।

    फिर लौटेंगे इसी जहान में
    फिर डूबेंगे प्रेम सागर में....................इस सोच को सलाम, इस तन्मयता को सलाम, इस समर्पण को प्रणाम। अति सुन्दर प्रारंभ और अभिलाषित अंत। जब तक आप जैसी क़लमकार हैं, प्रेम का जयकार होता रहेगा।
    साधुवाद

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    Replies
    1. आपके इस सुन्दर विश्लेषण के लिए तहे दिल से आभार । सम्मानित

      Delete
  4. जय हो बेहद सुन्दर

    ReplyDelete
  5. आयातित
    वस्तुओं
    के
    बहिष्कार के चलते
    हम
    पल भर भी
    नहीं
    चल सके साथ में !
    सिर्फ
    मंगल
    सूत्र
    रह गया हाथ में !!
    - शरद जायसवाल कटनी म.प्र. इंडिया
    मो. 9893417522

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